मूली की खेती

मूली की खेती के लिए आवश्यक जलवायु
मूली की खेती के लिए ठंडी जलवायु की जरूरत होती है। लेकिन कुछ विशेष किस्मों की सालभर खेती की जा सकती है। मूली की फसल के लिए 10 से 15 सेंटीग्रेड का तापमान सही होता है। ज्यादा तापमान होने पर इसकी फसल कड़वी और कड़ी हो जाती है। अतः किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि ठंड के मौसम में ही इसकी खेती करें।इसका उत्पादन भारत में मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब, असम, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में किया जाता है।
मूली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
मूली के लिए उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। मूली का अच्छा उत्पादन लेने के लिए जीवांशयुक्त दोमट या बलुई दोमट का उपयोग करें। मिट्टी का पीएचमान 6.5 से 7.5 सही होता है। इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र या अन्य सॉयल टेस्टिंग सेंटर से मिट्टी की जांच करा लें।
मूली की उन्नत किस्में
मूली की खेती (Radish cultivation) करने से पहले किसान भाइयों को सबसे पहले यही बात आती है कि कौन सी किस्म का चुनाव करें जिससे बाजार में इसका बेहतर भाव मिल सके।
मूली कुछ प्रमुख किस्में
पूसा चेतकी
इसकी खेती पूरे भारत में की जा सकती है। प्रति एकड़ खेत से 100 क्विंटल फसल की उपज होती है। गर्मी के मौसम में इसकी जड़ें कम तीखी होती हैं। जड़ों की लंबाई 15 से 22 सेंटीमीटर होती है। इस किस्म की मूली सफेद, नरम और मुलायम होती है। फसल को तैयार होने में 40 से 50 दिनों का समय लगता है।
पूसा हिमानी
इसकी जड़ें लंबी, सफेद और कम तीखी होती हैं। फसल को तैयार होने में 50 से 60 दिन समय लगता है। इसकी बुवाई के लिए अक्टूबर का महीना सर्वोत्तम है। प्रति एकड़ जमीन से 128 से 140 क्विंटल मूली की पैदावार होती है।
जापानी सफेद
इस किस्म की मूली की जड़ें 15 से 22 सेंटीमीटर बेलनाकार, कम तीखी, चिकनी एवं स्वाद में मुलायम होती है। इसकी बुवाई के लिए 15 अक्तूबर से 15 दिसंबर तक का समय सर्वोत्तम होता है। बुवाई के 45 से 55 दिन बाद फसल की खुदाई की जा सकती है। प्रति एकड़ जमीन से 100 से 120 क्विंटल मूली की उपज होती है।
पूसा रेशमी
इसकी जड़ें 30 से 35 सेंटीमीटर लंबी होती है। इसकी पत्तियों का रंग हल्का हरा होता है। इस किस्म की बुवाई मध्य सितम्बर से अक्टूबर तक करनी चाहिए। बुवाई के 55 से 60 दिन बाद फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ खेत से 126 से 140 क्विंटल फसल की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा आपको बीज भंडार पर आपको मूली की कई उन्नत किस्में जैसे- जापानी सफ़ेद, पूसा देशी, पूसा चेतकी, अर्का निशांत, जौनपुरी, बॉम्बे रेड, पूसा रेशमी, पंजाब अगेती, पंजाब सफ़ेद, आई.एच. आर-1 एवं कल्याणपुर सफ़ेद आसानी से मिल जाएंगे।
ठंडे प्रदेश के लिए ह्वाइट इसली, रैपिड रेड, ह्वाइट टिप्स, स्कारलेट ग्लोब और पूसा हिमानी अच्छी प्रजातियां हैं।
खेत की तैयारी
मूली की खेती के लिए सिंतबर से लेकर नवंबर तक का महीना उचित है। इसे आप वर्षा समाप्त होने के बाद कभी भी कर सकते हैं। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करके खेत को भुरभुरा बना लें। जुताई करते समय 200 से 250 कुंतल सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर मिला लें।
बुआई और बीज शोधन
मूली का बीज 10 से 12 किलोग्राम प्राति हेक्टेयर पर्याप्त होती है। बीजों का शोधन 2.5 ग्राम थीरम का प्रयोग एक किलोग्राम बीज के लिए कर सकते हैं।
मूली की बुआई कब और कैसे करे?
मूली की बुआई के लिए सितंबर-अक्टूबर का महीना सर्वाधिक उपयुक्त है, लेकिन कुछ प्रजातियों की बुआई अलग-अलग समय पर की जा सकती है। जैसे- पूसा हिमानी की बुआई दिसम्बर से फरवरी तक की जाती है। पूसा चेतकी प्रजाति को मार्च से मध्य अगस्त माह तक बोया जा सकता है।
मूली की बुआई मेड़ों या समतल क्यारियों में की जाती है। लाइन से लाइन या मेड़ों से मेंड़ो की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर रखें। पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सेंटीमीटर रखें। बुआई 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर करें।
खाद और उर्वरक प्रबंधन
मूली की खेती (muli ki kheti) के लिए 200 से 250 कुंतल सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी करते समय देनी चाहिए। इसके साथ ही 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटॉश के रूप में प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।
नाइट्रोजन की आधी मात्रा फॉस्फोरस एवं पोटॉश की पूरी मात्रा बुआई से पहले और नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बार में खड़ी फसल में दें। जिसमें नाइट्रोजन 1/4 मात्रा शुरू की पौधों की बढ़वार पर और 1/4 जड़ों की बढ़वार के समय दें।
मूली की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
मूली की फसल में पहली सिंचाई 3-4 पत्तियां आने पर करनी चाहिए। मूली में सिंचाई भूमि की नमी के अनुसार कम-ज्यादा करनी पड़ती है। सर्दियों में 10-15 दिन के अंतराल पर और गर्मियों में प्रति सप्ताह सिंचाई अवश्य करें।
खरपतवार का प्रंबधन
मूली की फसल (muli ki phasal) में खरपतवार की समस्या रहती है। किसानों मित्रों का यही प्रश्न रहता है कि मूली की फसल में निराई-गुड़ाई और खरपतवारों का नियंत्रण कैसे करें?
तो आपको बता दें, पूरी फसल में 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई जरूर करें। जब जड़ों की बढ़वार शुरू हो जाए तो एक बार मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ा दें। खरपतवार नियंत्रण हेतु बुआई के तुरंत बाद 2 से 3 दिन के अंदर 3.3 लीटर पेंडामेथलीन 600 से 800 लीटर पानी के साथ घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव कर दें।
लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण
मूली की फसल में ह्वाइट रस्ट, सरकोस्पोरा कैरोटी, पीला रोग, अल्टरनेरिया पर्ण, अंगमारी रोग लगने की संभावना रहती है। इन्हे रोकने के लिए फफूंद नाशक दवा डाईथेन एम् 45 या जेड 78 का 0.2% घोल से छिड़काव करें।
बीज उपचारित होना चाहिए 0.2% ब्लाईटेक्स का छिड़काव करना चाहिए। पीला रोग के नियंत्रण हेतु इंडोसेल 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या इंडोधान 2 मिलीलीटर प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करें।
कीट नियंत्रण
मूली की फसल में रोग के साथ-साथ कीटों का भी प्रकोप होता है। मूली में मांहू, मूंगी, बालदार कीड़ा, अर्धगोलाकार सूंडी, आरा मक्खी, डायमंड बैक्टाम कीट लगते है। इनकी रोकथाम हेतु मैलाथियान 0.05% तथा 0.05% डाईक्लोरवास का प्रयोग करें। थायोडान, इंडोसेल का 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें। 10% बी.एच.सी. या 4% कार्बेरॉल का चूर्ण का भी छिड़काव कर सकते हैं।
फसल कटाई और मार्केटिंग
कटाई हेतु जब खेत में मूली की जड़े खाने लायक हो जाए अर्थात बुआई के 45 से 50 दिन बाद जड़ों को सुरक्षित निकालकर सफाई करके बाद में बाजार में बेच दें। अगेगी मूली की खेती से किसानों को अधिक आमदनी होती है।
इसके अलावा मूली का प्रोसेसिंग कर खुद इसका सलाद और अचार बनाकर बाजार में बेच सकते हैं, जिससे आपको ज्यादा मुनाफा होगा।