मछली पालन भी एक प्रकार की खेती है,मछली पालन कैसे करें?

कृषि क्षेत्र का दायरा बहुत बड़ा है। उसमें मछली पालन (fish farming) भी एक अभिन्न अंग है। मछली पालन ने देश के किसानों को एक नए दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है। इससे किसानों को ढेरों लाभ मिल रहे हैं।पुराने जमाने से ही जल संचय की व्यवस्था ग्रामीण इलाकों में पानी के लिए आत्मनिर्भर बनाने में मददगार रहा है। जल संचय सिर्फ कृषि और पीने योग्य पानी के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इसका एक और विकल्प मछली पालन भी है जिससे जिससे ग्रामीण इलाकों के श्रमिक वर्ग, मजदूर और मछुआरे को व्यवसाय और रोजगार के मौके मिलते हैं।
मछली पालन क्या है?
मछली पालन भी एक प्रकार की खेती है। इसे किसी तालाब या किसी निश्चित घेरे में मछली की बीज (छोटे मछली) को बड़ा करना मछली पालन कहलाता है।
आसान भाषा में कहें, तो आहार और मुनाफे के लिए मछलियों को पालना ही मछली पालन है।
मत्स्य पालन पशुपालन की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। हालांकि यह सिर्फ अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए नहीं बल्कि प्राकृतिक संसाधनों को अपने अनुकूल बनाने में भी मददगार होता है।मछली पालन सोचने में तो बहुत बड़ी और उलझन भरी व्यवसाय की व्यवस्था लगती है लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह बेहद आसान और किफायती तथा कम जोखिम वाला व्यवसाय है।आसान भाषा में कहें तो किसानों के लिए एक उत्तम व्यवसाय है जो कृषि से हटकर कोई दूसरा विकल्प बन सकता है। जिसमें अगर ज्यादा बारिश हो जाए, ओले पड़े, आंधी आए, तूफान आए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मछली पालन की आधुनिक व्यवस्था अब ऐसी हो गई है की तालाब, नदी, पोखर के पानी में किया जा सके है। सबसे अच्छी बात यह है कि हर आकार के मछली का अच्छा दाम मिल जाता है। यह उस पर भी निर्भर करता कि आप कैसे बीज डालते हैं और कैसे अपने मछलियों को चारा डालते हैं। वैसे भारत सरकार भी मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए नीली क्रांति जैसे योजनाओं को लाया है जिसमें आधुनिकता के साथ-साथ प्रौद्योगिकी और मत्स्य पालन को लेकर उत्तम प्रशिक्षण देना शामिल है। वहीं भारत सरकार के डेरी व मत्स्य पालन मंत्रालय ने कई सब्सिडी की व्यवस्था कि है जिसमें मछुआरों को उत्तम प्रशिक्षण समेत मत्स्य पालन को लेकर तरह-तरह के योजनाएं शामिल है ।
मत्स्य पालन के लिए मुख्य रूप से इन बातों पर ध्यान रखना बेहद जरूरी है
भूमि का चयन
मछलियों के जीवन की शुरुआत सबसे पहले उनके संचय होने वाले जगह पर ही निर्भर करता है जैसे तालाब, नदी, पोखर, समुंद्र इत्यादि लेकिन कौन सी मछली किस जगह के लिए उपयुक्त है इसकी जानकारी होना बेहद जरूरी है।
तालाब प्रबंधन के लिए कुछ विशेष सावधानियां
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तालाब से अनावश्यक पेड़ पौधे निकाल दें।
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तालाब से अवांछित जीव जंतुओं और भक्षक मछली को निकालें।
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पानी का पीएच सुधारते रहें।
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तालाब में उचित मात्रा में गोबर और खाद डालें।
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उचित मात्रा में पालने योग्य मछली का बीज डालें।
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तालाब में मछली की खुराक की जांच करते रहें।
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मछली को कृत्रिम आहार दें।
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मछली की बढ़वार की जांच करते रहें।
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तालाब से बेचने योग्य मछली को निकाल लें।
बीज का चयन
वातावरण और प्रकृति के अनुकूल वैसे बीज का चयन करना चाहिए जो उस इलाके में पनप सके बढ़ सके जिसका आकार में वृद्धि हो सके और उसके लिए उस जगह के अनुकूल हो ऐसी बीज ही चयन करना चाहिए अब ऐसा तो है नहीं कि समुद्री मछली को हम गांव के तालाब में पैदा करें जो प्राकृतिक के बिल्कुल विपरीत है।
मछलियों के लिए चारा
मछलियों के लिए चारा इतना ही जरूरी है जितना हमें सांस लेना जरूरी है उनके चारा पर ही यह बात निर्भर करता है कि उनका आकार कैसा होगा । इसका यह मतलब नहीं कि हम ज्यादा चारा डाल देंगे तो मछली का आकार अच्छा होगा । यह अनुपात में होना बहुत जरूरी है
मछली पकड़ने के सही समय
मत्स्य पालन में यह बात सबसे ध्यान रखने योग्य है कि हम किस परिस्थिति में मछली को बाहर निकाल रहे हैं मछली में वृद्धि होना बाकी हो और मछली को बाहर निकाल लेना कहीं से फायदेमंद नहीं हो सकता इसलिए उचित वक्त का इंतजार करना और धैर्य रखना मत्स्य पालन का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण इकाई है ।
खरीद-बिक्री
ग्रामीण इलाकों में मछलियों की खरीद बिक्री इस पर निर्भर करती है कि कौन सी मछली जिंदा है कौन सी मछली ताजा है कौन सी मछली मृत हैं। ग्रामीण इलाकों की देसी मछली लोग ताजा खाना पसंद करते हैं लेकिन इसके विपरीत समुंद्री मछली हमेशा कुछ दिन पुराने ही थाली पर आती है। तो अगर हम ग्रामीण इलाकों में मत्स्य पालन कर रहे हैं तो उसकी बिक्री के समय हमें इस बात को ध्यान रखना है कि जितना हो सके मछली को हम जिंदा रखें।