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परशुराम जयंती की पूजा विधि

प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। इस दिन उनका जन्म ऋषि जमदग्नी और रेणुका के पुत्र के रूप में धरती पर हुआ था। हर साल वैशाख शुक्ल तृतीया की तिथि पर भगवान परशुराम जी की जयंती पड़ती है। इस बार उनकी जयंती 10 मई 2024, दिन शुक्रवार को पड़ रही है।पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने परशुराम जी को अधर्म को नष्‍ट करने के लिए एक दिव्य फरसा, भार्गवस्त्र प्रदान किया था। माना जाता हैं कि जब धरती पर हैहयवंशी क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार बढ़ गया था, तो धरती माता ने भगवान श्री विष्णु से मदद मांगी थी और उसके फलस्वरूप ही भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। उन्होंने 21 बार हैहय क्षत्रिय राजाओं से युद्ध कर उनका संहार किया और उसके बाद वो महेन्द्रगिरि पर्वत पर जाकर तपस्या में लीन हो गए।

परशुराम जयंती पर पूजा विधि :
• परशुराम जयंती पर प्रात:काल उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
• अब श्री परशुराम जी का चित्र या मूर्ति को लकड़ी के पाट पर लाल वस्त्र बिछाकर विराजमान करें।
• गंगाजल या किसी शुद्ध जल से चित्र या मूर्ति को पवित्र करें।
• अब पंचोपचार पूजा करें। अर्थात् कुंकू, धूप, गंध, पुष्प, नैवद्य आदि से उनकी पूजा करें।
• अंत में आरती उतारें और सभी को प्रसाद वितरित करें।
• पूरे दिन व्रत निराहार रहें।
• शाम को आरती करने के बाद फलाहार करें।
• इसके बाद अगले दिन पुन: पूजन करने के उपरांत भोजन ग्रहण करें।
भगवान परशुराम की जयंती के दिन मंत्र- ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।। तथा ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।। का अधिक से अधिक जाप करें।
आपको बता दें कि हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रतिवर्ष परशुराम जयंती के बाद वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को संतान की कामना हेतु परशुराम द्वादशी पर व्रत रखकर उनका पूजन-अर्चन किया जाता है।
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