क्रोध विनाश का कारण बन जाता है

क्रोध कभी नहीं करना चाहिए। यह व्यक्ति की मति मार देता है, बुद्धि हर लेता है। इसके वशीभूत होकर लोग अक्सर गलत कदम उठा लेते हैं। इसकी वजह से इंसान सही-गलत में अंतर नहीं कर पाता है और वहशीपन पर उतारू हो जाता है। इसके प्रभाव में आदमी अपनापन, स्नेह, लगाव, प्रेम, आत्मीयता तो छोड़िए, अपना अस्तित्व तक भूल जाता है। क्रोध की अवस्था में किसी व्यक्ति और खूंखार जानवर में कोई फर्क नहीं रह जाता है।
इंसान का रोष उसके लिए कई बार अभिशाप के रूप में भी सामने आता है। यह मानव मन की एक भावना है, जिसे अक्सर अच्छा नहीं माना जाता है। क्रोध का जनक भय भी माना जाता है। जब इंसान भय पर नियंत्रण करने की कोशिश करता है तो वह रोष के रूप में प्रकट होता है। कहा गया है कि काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह ये सब जीवन के सबसे बड़े शत्रु हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि लोग तुम्हारा विरोध करेंगे, उत्पीड़न भी करेंगे। लेकिन बहुत सावधानीपूर्वक शांति और धैर्य बनाए रखना। यह मानकर चलना कि वे शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं, आत्मा को नहीं। कारण बताते थे, आत्मा तो अमर, अजर और अविनाशी है। वह समझाते थे- सत्य, अहिंसा पर अटल रहने वाले को कोई नहीं मार सकता। जो तुम्हारा तिरस्कार करता है, वह स्वयं भगवान का तिरस्कार करता है, क्योंकि उसी भगवान ने हम सबको बनाया है। भगवान श्रीकृष्ण ने क्रोध को नर्क का द्वार बताया है। उन्होंने कहा है कि जो मनुष्य बात-बात पर तैश में आ जाता है, वह जीवन में कभी तरक्की नहीं कर पाता है और जीवन में हमेशा दुखी रहता है। क्रोध की हालत में मनुष्य कभी सही निर्णय नहीं कर पाता है।
गुस्से की हालत में व्यक्ति खुद का भी नहीं रहता। वह अर्थहीन बातें करने लगता है। शास्त्रों में इसे मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु माना गया है। ऐसे में व्यक्ति अपना आपा खोकर कुछ भी कर बैठता है। रोष और आंधी को एक समान बताया गया है। दोनों के शांत होने पर ही पता चलता है कि नुकसान कितना हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि क्रोध सभी विपत्तियों का मूल कारण है। यह सांसारिक बंधन का कारण है, धर्म का नाश करने वाला है, इससे भ्रम पैदा होता है और बुद्धि खराब होती है।